*⚜बोधकथा १६०*
*चिड़ियों से छुटकारा*
एक राज्य के नागरिक बहुत परेशान थे।
पक्षी उनके खेत-खलिहान को बर्बाद कर दिया करते थे।
एक बार अपना दुखड़ा लेकर वे राजा के पास पहुंचे।
उनकी परेशानी सुन कर राजा भी क्रोधित हो उठा।
उसने ऐलान किया कि राज्य के सारे पक्षियों को मार दिया जाए।
और अब से जो सबसे ज्यादा पक्षी मारेगा, उसे पुरस्कृत किया जाएगा।
अब क्या था? होड़ मच गई पक्षियों को मारने की।
उस साल खेत-खलिहान बच गए।
धीरे-धीरे राज्य के सारे पक्षी समाप्त हो गए और लोगों ने राहत की सांस ली! राज्य में उत्सव मनाया जाने लगा।
लेकिन अगले वर्ष जब लोगों ने अपने खेतों में अनाज बोया तो आश्चर्य कि एक दाना भी न उगा! उसका कारण यह था कि मिट्टी में जो कीड़े थे, उन्होंने बीज को ही खा लिया।
पहले पक्षी ऐसे कीड़ों को खा जाया करते थे और फसल की रक्षा स्वयं ही हो जाती थी।
लेकिन इस बार राज्य में कोई पक्षी ही नहीं बचा था, जो उन कीड़ों को नष्ट करता।
उस साल फसल नहीं हुई।
राज्य में त्राहि-त्राहि मच गयी, भुखमरी के हालात पैदा हो गए।
लोग फिर राजा के पास पहुंचे। उनका दुख सुन कर राजा को अपने निर्णय पर भी अफसोस हुआ।
उसने नया आदेश दिया कि अब दूसरे राज्यों से पक्षी पकड़ का मंगाए जाएं।
बड़ी संख्या में पक्षियों के आने से स्थिति में सुधार हुआ तथा खेत-खलिहान फिर से लहलहाने लगे!
इस पृथ्वी तल पर जो भी रचना है, वह बेकार नहीं है।
विधाता ने बड़ी ही सूझ-बूझ से रचना की है और कहीं न कहीं प्रकृति के जीवन चक्र से जुड़ी है।
इसे नष्ट करने की कोशिश कितनी खतरनाक होती है, यह हम वर्तमान में देख रहे हैं।
आज जंगलों से छेड़-छाड़ की, बड़े-बड़े वृक्ष काटे गए जिससे पशु-पक्षी कम हुए तथा अति-वृष्टि, अकाल का सामना करना पड़ा है।
सागर के साथ मनमानी तरीके से छेड़-छाड़ हुई, जिससे सैंडी लहरों की तबाही का मंजर देखने को मिला।
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*चिड़ियों से छुटकारा*
एक राज्य के नागरिक बहुत परेशान थे।
पक्षी उनके खेत-खलिहान को बर्बाद कर दिया करते थे।
एक बार अपना दुखड़ा लेकर वे राजा के पास पहुंचे।
उनकी परेशानी सुन कर राजा भी क्रोधित हो उठा।
उसने ऐलान किया कि राज्य के सारे पक्षियों को मार दिया जाए।
और अब से जो सबसे ज्यादा पक्षी मारेगा, उसे पुरस्कृत किया जाएगा।
अब क्या था? होड़ मच गई पक्षियों को मारने की।
उस साल खेत-खलिहान बच गए।
धीरे-धीरे राज्य के सारे पक्षी समाप्त हो गए और लोगों ने राहत की सांस ली! राज्य में उत्सव मनाया जाने लगा।
लेकिन अगले वर्ष जब लोगों ने अपने खेतों में अनाज बोया तो आश्चर्य कि एक दाना भी न उगा! उसका कारण यह था कि मिट्टी में जो कीड़े थे, उन्होंने बीज को ही खा लिया।
पहले पक्षी ऐसे कीड़ों को खा जाया करते थे और फसल की रक्षा स्वयं ही हो जाती थी।
लेकिन इस बार राज्य में कोई पक्षी ही नहीं बचा था, जो उन कीड़ों को नष्ट करता।
उस साल फसल नहीं हुई।
राज्य में त्राहि-त्राहि मच गयी, भुखमरी के हालात पैदा हो गए।
लोग फिर राजा के पास पहुंचे। उनका दुख सुन कर राजा को अपने निर्णय पर भी अफसोस हुआ।
उसने नया आदेश दिया कि अब दूसरे राज्यों से पक्षी पकड़ का मंगाए जाएं।
बड़ी संख्या में पक्षियों के आने से स्थिति में सुधार हुआ तथा खेत-खलिहान फिर से लहलहाने लगे!
इस पृथ्वी तल पर जो भी रचना है, वह बेकार नहीं है।
विधाता ने बड़ी ही सूझ-बूझ से रचना की है और कहीं न कहीं प्रकृति के जीवन चक्र से जुड़ी है।
इसे नष्ट करने की कोशिश कितनी खतरनाक होती है, यह हम वर्तमान में देख रहे हैं।
आज जंगलों से छेड़-छाड़ की, बड़े-बड़े वृक्ष काटे गए जिससे पशु-पक्षी कम हुए तथा अति-वृष्टि, अकाल का सामना करना पड़ा है।
सागर के साथ मनमानी तरीके से छेड़-छाड़ हुई, जिससे सैंडी लहरों की तबाही का मंजर देखने को मिला।
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